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“शिक्षा और समानता की ओर एक कदम: स्लम बस्तियों के बच्चों की पीड़ा और आशा”

June 28, 2025 | by aashishgautam265@gmail.com

आज मैं एक एनजीओ में बच्चों को पढ़ाने गया था। पढ़ाते समय मेरे मन में एक गहरी बेचैनी उठी। वहां के बच्चे 10–12 साल के हो चुके हैं, लेकिन वे अभी तक ठीक से हिंदी भी नहीं पढ़ पा रहे हैं। ये वही बच्चे हैं जो स्लम बस्तियों में रहते हैं — जहां उन्हें गालियाँ दी जाती हैं, मारा-पीटा जाता है, और जीवन एक संघर्ष बन चुका है।

इस अनुभव ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम कैसी दुनिया में रह रहे हैं? एक ओर लोग महलों में रहते हैं, विलासिता भरा जीवन जीते हैं, और दूसरी ओर करोड़ों लोग गंदी बस्तियों में नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।

हम एआई और टेक्नोलॉजी के युग में पहुंच चुके हैं। “न्याय, समानता और स्वतंत्रता” जैसे शब्दों पर बड़े-बड़े सिद्धांत गढ़े जा रहे हैं। लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि आज भी करोड़ों बच्चे बुनियादी शिक्षा से वंचित हैं। उन्हें न पढ़ना आता है, न लिखना। और जब कोई इंसान पढ़ना ही नहीं जानता, तो वह कैसे आगे बढ़ पाएगा?

इन बच्चों का भविष्य मुझे डराता है। बिना शिक्षा के वे क्या करेंगे? वे मजबूर होंगे — रिक्शा चलाने, ढाबे पर बर्तन धोने, या फिर और भी ऐसे कामों में उलझकर रह जाएंगे जो केवल जीवन जीने का साधन भर बनेंगे, सपना नहीं।

समाधान कहां है?

मुझे लगता है कि अगर हम इन बच्चों के जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले हमें उनके माहौल को बदलना होगा।इंसान का विकास केवल स्कूल की पढ़ाई से नहीं होता, बल्कि उसके घर और सामाजिक वातावरण से भी गहराई से जुड़ा होता है।अगर उनके घर में गाली-गलौज, हिंसा और डर का माहौल रहेगा, तो वे कभी भी निश्चिंत होकर न पढ़ पाएंगे, न आगे बढ़ पाएंगे।

रीडिंग स्किल (Reading skill) है चाबी

शिक्षा में सबसे जरूरी है — रीडिंग स्किल (Reading skill)। मेरा मानना है कि अगर हम उन्हें पढ़ना सिखा दें, तो हम 70% जंग जीत लेंगे।एक बार उन्हें किताबों से प्यार हो गया, तो फिर उन्हें कोई नहीं रोक पाएगा। वे खुद सीखेंगे, खुद समझेंगे, और खुद अपना भविष्य बनाएंगे।

अब्राहम लिंकन भी गरीब थे। उन्होंने किसी स्कूल में नहीं पढ़ा, लेकिन किताबों से दोस्ती कर ली। सेल्फ-स्टडी की, और खुद को एक महान वकील और नेता के रूप में स्थापित किया।अगर लिंकन कर सकते हैं, तो ये बच्चे भी कर सकते हैं — बशर्ते हम उन्हें पढ़ने के काबिल बना दें।

सहायता नहीं, सशक्तिकरण (Empowerment)

मैं स्पून-फीडिंग (bar bar समझाकर पढ़ाना) के बजाय सशक्तिकरण (empowerment) में विश्वास रखता हूं।हमें उन्हें इस लायक बनाना होगा कि वे खुद सीख सकें।हमें उन्हें किताबों से प्रेम करवाना होगा, ताकि उन्हें किसी के सहारे की जरूरत न पड़े।

समाज के रूप में हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम न सिर्फ़ बराबरी की बातें करें, बल्कि उस बराबरी को ज़मीन पर उतरता भी देखें।

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